कलर थेरेपी से सेहत बनाएं  

TREATMENT THROUGH COLOUR  THERAPY ,TREATMENT THROUGH COLOUR  THERAPY, TREATMENT THROUGH COLOUR  THERAPY

कलर थेरेपी सेहत बनाएं

प्राणियों का संपूर्ण शरीर है। शरीर के समस्त अवयवों का रंग अलग-अलग है। शरीर की समस्त कोशिकाएँ भी रंगीन हैं। शरीर का कोई अंग रुग्ण (बीमार) होता है तो उसके रासायनिक द्रव्यों के साथ-साथ रंगों का भी असंतुलन हो जाता है। रंग चिकित्सा उन रंगों को संतुलित कर देती है जिसके कारण रोग का निवारण हो जाता है।
शरीर में जहाँ भी विजातीय द्रव्य एकत्रित होकर रोग उत्पन्न करता है, रंग चिकित्सा उसे दबाती नहीं अपितु शरीर के बाहर निकाल देती है। प्रकृति का यह नियम है कि जो चिकित्सा जितनी स्वाभाविक होगी, उतनी ही प्रभावशाली भी होगी और उसकी प्रतिक्रिया भी न्यूनतम होगी।
सूर्य की रश्मियों में 7 रंग पाए जाते हैं-
1. लाल, 2. पीला, 3. नारंगी, 4. हरा, 5. नीला, 6.आसमानी, 7. बैंगनी
उपरोक्त रंगों के तीन समूह बनाए गए हैं –
1. लाल, पीला और नारंगी
2. हरा
3. नीला, आसमानी और बैंगनी
प्रयोग की सरलता के लिए पहले समूह में से केवल नारंगी रंग का ही प्रयोग होता है। दूसरे में हरे रंग का और तीसरे समूह में से केवल नीले रंग का। अतः नारंगी, हरे और नीले रंग का उपयोग प्रत्येक रोग की चिकित्सा में किया जा सकता है।
नारंगी रंग की दवा के प्रयोग
कफजनित खाँसी, बुखार, निमोनिया आदि में लाभदायक। श्वास प्रकोप, क्षय रोग, एसिडीटी, फेफड़े संबंधी रोग, स्नायु दुर्बलता, हृदय रोग, गठिया, पक्षाघात (लकवा) आदि में गुणकारी है। पाचन तंत्र को ठीक रखती है। भूख बढ़ाती है। स्त्रियों के मासिक स्राव की कमी संबंधी कठिनाइयों को दूर करती है।
हरे रंग की दवा के प्रयोग
खासतौर पर चर्म रोग जैसे- चेचक, फोड़ा-फुंशी, दाद, खुजली आदि में गुणकारी साथ ही नेत्र रोगियों के लिए (दवा आँखों में डालना) मधुमेह, रक्तचाप सिरदर्द आदि में लाभदायक है।
नीले रंग की दवा के प्रयोग
शरीर में जलन होने पर, लू लगने पर, आंतरिक रक्तस्राव में आराम पहुँचाता है। तेज बुखार, सिरदर्द को कम करता है। नींद की कमी, उच्च रक्तचाप, हिस्टीरिया, मानसिक विक्षिप्तता में बहुत लाभदायक है। टांसिल, गले की बीमारियाँ, मसूड़े फूलना, दाँत दर्द, मुँह में छाले, पायरिया घाव आदि चर्म रोगों में अत्यंत प्रभावशाली है। डायरिया, डिसेन्टरी, वमन, जी मचलाना, हैजा आदि रोगों में आराम पहुँचाता है। जहरीले जीव-जंतु के काटने पर या फूड पॉयजनिंग में लाभ पहुँचाता है।
यह चिकित्सा जितनी सरल है उतनी ही कम खर्चीली भी है। संसार में जितनी प्रकार की चिकित्साएँ हैं, उनमें सबसे कम खर्च वाली चिकित्सा है।
दवाओं की निर्माण की विधि
जिस रंग की दवाएँ बनानी हों, उस रंग की काँच की बोतल लेकर शुद्ध पानी भरकर 8 घंटे धूप में रखने से दवा तैयार हो जाती है। बोतल थोड़ी खाली होनी चाहिए व ढक्कन बंद होना चाहिए। इस प्रकार बनी हुई दवा को चार या पाँच दिन सेवन कर सकते हैं। नारंगी रंग की दवा भोजन करने के बाद 15 से 30 मिनट के अंदर दी जानी चाहिए। हरे तथा नीले रंग की दवाएँ खाली पेट या भोजन से एक घंटा पहले दी जानी चाहिए। दवा की मात्रा- प्रत्येक रंग की दवा की साधारण खुराक 12 वर्ष से ऊपर की उम्र वाले व्यक्ति के लिए 2 औंस यानी 5 तोला होती है। कम आयु वाले बच्चों को कम मात्रा देनी चाहिए। आमतौर पर रोगी को एक दिन में तीन खुराक देना लाभदायक है।
सफेद बोतल के पानी पर किरणों का प्रभाव
सफेद बोतल में पीने का पानी 4-6 घंटे धूप में रखने से वह पानी कीटाणुमुक्त हो जाता है तथा कैल्शियमयुक्त हो जाता है। अगर बच्चों के दाँत निकलते समय वही पानी पिलाया जाए तो दाँत निकलने में आसानी होती है।

सूर्य किरण की सातों किरणों में से जिस किरण (Violet, Indigo, Blue, Green, Yellow, Orange या Red) की औषधि बनानी हो उसी रंग की कांच की साफ़ बोतल ले लें। अगर बोतल उस रंग का न हो तो उस कलर का polythin ले कर बोतल पर लपेट दे। बोतलों को अच्छी तरह से धोकर साफ़ कर लें। उसके बाद उसमे साफ़ पीने का पानी भर दें। बोतल को ऊपर से तीन अंगुल खाली रखें और ढक्कन लगाकर अच्छे से बंद कर दें।*

*?पानी से भरी इन बोतलों को सूर्योदय के समय से 6 से 8 घंटे तक धूप में रख दें। बोतलें रखते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि किसी भी बोतल की छाया दूसरी बोतल पर न पड़े। रात्रि को बोतल को घर के अंदर रख दें। इस प्रकार सूर्य किरण औषधि तैयार हो जाती है। इस औषधि जल को रोगी को दिन में 3-4 बार पिलायें। एक बार तैयार किये गए औषधि जल को 4 -5 दिन तक पी सकते हैं। औषधि जल समाप्त होने के पश्चात पुनः बना लें।*

*सूर्य किरण औषधि सेवन करने की विधि

नारंगी रंग की सूर्य औषधि भोजन करने के बाद 15 -30 मिनट के अंदर लेनी चाहिए। हरे या नीले रंग की औषधि खाली पेट या भोजन करने से एक घंटा पहले सेवन करनी चाहिए। हरे रंग की औषधि प्रातःकाल 200 ml तक ले सकते हैं। यह औषधि शरीर से Toxins को बाहर निकालती है एवं इसका कोई विपरीत प्रभाव नहीं है।*

*??औषधि की मात्रा

एक बार में एक से दौ चम्मच औषधि दिन में तीन या चार बार लें।*

*विभिन्न रंग की बोतलों के पानी सेवन करने से लाभ

लाल (Red)रंग

*लाल रंग की बोतल का पानी अत्यंत गर्म प्रकृति का होता है। अतः जिनकी प्रकृति गर्म हो उन्हें इसे पीना नहीं चाहिए। इसको पीने से खूनी दस्त या उलटी हो सकती है। इस पानी का उपयोग केवल मालिश करने के लिए करना चाहिए। यह Blood और Nerves को उत्तेजित करता है। और शरीर में गर्मी बढ़ाता है। गर्मियों में इसका उपयोग नहीं करना चाहिए। यह सभी प्रकार के वात और कफ रोगों में लाभ प्रदान करता है।*

2नारंगी (Orange) रंग  की बोतल में तैयार किया गया जल Blood Circulation को बढ़ाता है और मांसपेशियों को मजबूत करता है। यह औषधि मानसिक शक्ति और इच्छाशक्ति को बढ़ाने वाली है। अतः यदि किसी व्यक्ति की जन्मकुंडली में सूर्य या चन्द्रमा निर्बल है तो उसे इस जल का उपयोग करके अत्यंत लाभ प्राप्त हो सकता है। या औषधि बुद्धि और साहस को भी बढ़ाता है। कफ सम्बंधित रोगों,खांसी, बुखार, निमोनिया, सांस से सम्बंधित रोग, Tuberculosis, पेट में गैस, हृदय रोग, गठिया, Anaemia, Paralysis आदि रोगों में लाभ देता है। यह औषधि माँ के स्तनों में दूध की वृद्धि भी करती है।*

पीला(Yellow) रंग शारीरिक एवं मानसिक स्वस्थता के लिए यह जल बहुत उपयोगी है परन्तु इस जल को थोड़ी मात्रा में लेना चाहिए। यह जल Digestive System को ठीक करता है अतः पेट दर्द, कब्ज आदि समस्यायों के निदान के लिए इस जल का सेवन लाभकारी है। परन्तु पेचिश होने पर इस जल को न लें। इसके अतिरिक्त हृदय, लीवर और Lungs के रोगों में भी इस जल को पीने से लाभ मिलता है।*

4हरा (Green )रंग  यह औषधि शारीरिक स्वस्थता और मानसिक प्रसन्नता देने वाली है। Muscles को regenerate करती है। Mind और Nervous system को स्वस्थ रखती है। इस जल को वात रोगों, Typhoid, मलेरिया आदि बुखार, Liver और Kidney में सूजन, त्वचा सम्बंधित रोगों, फोड़ा -फुन्सी, दाद, आँखों के रोग, डायबिटीज, सूखी खांसी, जुकाम, बवासीर, कैंसर, सिरदर्द, ब्लड प्रेशर, आदि में सेवन करना लाभप्रद है।*

5आसमानी (Blue) रंग: -*यह शीतल औषधि है। पित्त सम्बंधित रोगों में  है। यह प्यास को शांत करता है एवं बहुत अच्छा Antiseptic भी है। सभी प्रकार के बुखारों में सर्वोत्तम लाभकारी है। कफ वाले व्यक्तियों को इसका उपयोग नहीं करना चाहिए। यह बुखार, खांसी, दस्त, पेचिश, दमा, सिरदर्द, Urine सम्बन्धी रोग, पथरी, त्वचा रोग, नासूर, फोड़े -फुन्सी, आदि रोगों में अत्यंत लाभ प्रदान करता है।*

*6नीला (Indigo) रंग:-*

यह औषधि भी शीतल श्रेणी में आती है। इस औषधि को लेने में कुछ कब्ज की शिकायत हो सकती है परन्तु यह शीतलता और मानसिक शान्ति प्रदान करता है। शरीर पर इस जल का प्रभाव बहुत जल्दी होता है। यह Intestine, Leucoria, योनिरोग आदि रोगों में विशेष लाभप्रद है। तथा शरीर में गर्मी के सभी रोगों को समाप्त करता है।*

7 ,बैंगनी (Voilet) रंग

इस औषधि के गुण बहुतायत में नीले रंग के जल से मिलते जुलते हैं। इसके सेवन से Blood में RBC Count बढ़ जाता है। यही खून की कमी को दूर कर Anaemia रोग को ठीक करता है। Tuberculosis जैसे रोग को ठीक करता है। इस जल को पीने से नींद अच्छी आती है।

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