संघ और राज्य” (Part I: The Union and its Territory)  

भारतीय संविधान का भाग I, “संघ और राज्य” (Part I: The Union and its Territory), भारत की संघीय संरचना और उसके क्षेत्रीय विभाजन की नींव को स्पष्ट करता है। इस भाग में भारतीय संघ की परिभाषा, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के निर्माण और उनके प्रशासन की व्यवस्था का विवरण है। नीचे इस भाग के प्रत्येक अनुच्छेद की विस्तृत जानकारी दी गई है:

अनुच्छेद 1: भारत और उसका क्षेत्र

  1. अनुच्छेद 1(1): यह अनुच्छेद भारत को एक संघीय गणतंत्र के रूप में परिभाषित करता है। भारत का क्षेत्र “भारत” या “इंडिया” के नाम से जाना जाएगा। संविधान के अनुसार, भारत एक संघीय राज्य है जिसमें विभिन्न राज्य और केंद्र शासित क्षेत्र शामिल हैं।
  2. अनुच्छेद 1(2): यह अनुच्छेद भारत के क्षेत्र की विस्तृत परिभाषा प्रदान करता। इसमें शामिल हैं:
    • भारतीय राज्यों की सूची
    • केंद्र शासित प्रदेश (जैसे दिल्ली, लद्दाख, जम्मू-कश्मीर, पुदुचेरी आदि)
    • कुछ विशेष क्षेत्र जो संविधान द्वारा केंद्र शासित प्रदेश के रूप में घोषित किए जा सकते हैं।

अनुच्छेद 2: नए राज्यों की नियुक्ति

  • अनुच्छेद 2 संसद को अधिकार देता है कि वह किसी भी नए राज्य को भारतीय संघ में शामिल कर सकती है। यह नए राज्यों के निर्माण, शामिल करने, या किसी भी क्षेत्रीय संशोधन के लिए आवश्यक कानूनी प्रावधान करता है।

अनुच्छेद 3: राज्यों का पुनर्गठन

  • अनुच्छेद 3 के तहत संसद को राज्यों के पुनर्गठन के लिए कानून बनाने का अधिकार प्राप्त है। इसमें शामिल हैं:
    • एक राज्य को विभाजित करना और कई नए राज्यों का निर्माण करना।
    • नए राज्यों का गठन करना।
    • राज्यों की सीमाओं में परिवर्तन करना।
    • राज्यों के बीच किसी भी क्षेत्र को स्थानांतरित करना।
  • किसी भी प्रस्तावित पुनर्गठन को संसद द्वारा पारित किया जाएगा, और इसके लिए राष्ट्रपति की सलाह पर कार्यवाही की जाएगी। हालांकि, राज्यों की विधानसभाओं से प्रस्ताव पर विचार करने की प्रक्रिया होती है, लेकिन संसद को अंतिम निर्णय का अधिकार होता है।

अनुच्छेद 4: अनुच्छेद 2 और 3 के अंतर्गत कानूनों का प्रभाव

  • अनुच्छेद 4 यह स्पष्ट करता है कि अनुच्छेद 2 और 3 के अंतर्गत बनाए गए कानून संविधान के अन्य प्रावधानों के साथ-साथ प्रभावी होंगे। ये कानून संविधान के भाग VI (राज्य की सरकार) और भाग III (मूल अधिकार) के प्रावधानों से किसी भी प्रकार का विरोध नहीं करेंगे। इस प्रकार, ये कानून संविधान की मूल संरचना को प्रभावित नहीं करेंगे।

अनुच्छेद 5-8: भारतीय नागरिकता

  • अनुच्छेद 5: यह उन व्यक्तियों की नागरिकता को परिभाषित करता है जो संविधान के प्रभाव में भारत में रहते हैं, साथ ही वे व्यक्तियों जो 1950 की तारीख को भारत में रहते थे और भारतीय नागरिकता प्राप्त करने के लिए पात्र हैं।
  • अनुच्छेद 6: यह स्वतंत्रता संग्राम के समय भारत में रहने वाले व्यक्तियों की नागरिकता को संबोधित करता है। यह उन व्यक्तियों के लिए नागरिकता की शर्तों को निर्दिष्ट करता है जो 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद पाकिस्तान से भारत में आ गए थे।
  • अनुच्छेद 7: यह अनुच्छेद उन व्यक्तियों के लिए नागरिकता से संबंधित नियम निर्धारित करता है जो भारत और पाकिस्तान के विभाजन के समय पाकिस्तान से भारत में प्रवासित हुए थे।
  • अनुच्छेद 8: यह अनुच्छेद उन प्रवासी भारतीयों की नागरिकता और उनके अधिकारों को परिभाषित करता है जो भारत में आकर निवास करते हैं और जिन्होंने पहले भारत की नागरिकता प्राप्त की थी।

भाग I का महत्व

  1. संघीय व्यवस्था: यह भाग भारत की संघीय व्यवस्था को सुदृढ़ करता है, जिसमें केंद्रीय और राज्य सरकारों के बीच अधिकारों का वितरण स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है।
  2. भौगोलिक संरचना: यह भारत के भौगोलिक और प्रशासनिक ढांचे की स्पष्टता प्रदान करता है, जिसमें केंद्र शासित प्रदेशों और राज्यों का विवरण होता है।
  3. कानूनी आधार: यह संविधान की स्थिरता और उसकी संघीय संरचना के लिए कानूनी आधार प्रदान करता है, जिससे राज्य और केंद्र के बीच शक्तियों का सही तरीके से वितरण सुनिश्चित होता है।
  4. नागरिकता और क्षेत्रीय अधिकार: यह भाग नागरिकता के अधिकारों और क्षेत्रीय विभाजन के नियमों को परिभाषित करता है, जो देश की एकता और अखंडता को बनाए रखने में सहायक होता है।
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