जानिए क्या है RERA ALL INDIA for buyers
जानिए क्या है RERA और कैसे यह रियल एस्टेट इंडस्ट्री ,घर खरीददारों को करेगा प्रभावित|
रियल एस्टेट सेक्टर में पारदर्शिता लाने और घर खरीददारों के हितों की रक्षा करने के मकसद से रियल एस्टेट (रेगुलेशन एंड डिवेलपमेंट एक्ट), 2016 (RERA) को लागू किया गया। आज हम आपको बता रहे हैं कि घर खरीददारों, बिल्डरों और ब्रोकर्स पर इसने क्या प्रभाव डाला है और इस कानून के तहत सजा का क्या प्रावधान है।
भारत सरकार ने 26 मार्च 2016 को रियल एस्टेट (रेगुलेशन और डिवेलपमेंट) एक्टर 2016 अधिनियमित किया और इसके सभी प्रावधान 1 मई, 2017 से लागू हो गए। सभी बिल्डर्स से कहा गया कि वे जुलाई 2017 तक अपने प्रोजेक्ट्स को RERA के तहत रजिस्टर कराएं। जो रियल एस्टेट एजेंट्स इसके दायरे में आते हैं, वे अब भी खुद को रजिस्टर कराने की प्रक्रिया में लगे हुए हैं। कई राज्यों को अब भी इस कानून के नियमों को नोटिफाई करना है और डिवेलपर्स/प्रमोटरों को अपने प्रोजेक्ट्स को RERA में रजिस्टर्ड कराना है।
क्या है RERA (रियल एस्टेट रेगुलेटरी एक्ट)
रियल एस्टेट (रेगुलेशन एंड डिेवेलपमेंट एक्ट, 2016 (RERA) को भारतीय संसद ने पास किया था। RERA का मकसद घर ग्राहकों के हितों की रक्षा करना और रियल एस्टेट सेक्टर में निवेश को बढ़ाना है। राज्य सभा ने RERA को 10 मार्च और लोकसभा ने 15 मार्च, 2016 को पास कर दिया था। 1 मई, 2016 को यह लागू हो गया। 92 में से 59 सेक्शंस 1 मई, 2016 और बाकी 1 मई, 2017 को अस्तित्व में आए। 6 महीने के भीतर केंद्र व राज्य सरकारों को अपने नियमों को केंद्रीय कानून के तहत नोटिफाई करना था।
क्यों जरुरी है RERA?
काफी वक्त से घर खरीददार इस बात की शिकायत कर रहे थे कि रियल एस्टेट की लेनदेन एकतरफा और ज्यादातर डिवेलपर्स के हक में थीं। RERA और सरकार के मॉडल कोड का मकसद मुख्य बाजार में विक्रेता और संपत्ति के खरीददार के बीच न्यायसंगत और सही लेनदेन तय करना है। उम्मीद की जा रही है कि RERA बेहतर जवाबदेही और पारदर्शिता लाकर रियल एस्टेट की खरीद को आसान बनाएगा। साथ ही राज्यों के प्रावधान केंद्रीय कानून की भावना को कमजोर नहीं करेंगे। RERA भारतीय रियल एस्टेट इंडस्ट्री का पहला रेगुलेटर है। रियल एस्टेट एक्ट के तहत यह अनिवार्य किया गया कि सभी राज्य और केंद्र शासित प्रदेश अपने रेगुलेटर और नियमों का गठन करेंगे, जिसके मुताबिक कामकाज होगा।
घर खरीददारों पर क्या होगा RERA का प्रभाव
कुछ अहम अनुपालन हैं:
- कोई भी अतिरिक्त इजाफा या परिवर्तन के बारे में आवंटियों को सूचना देना।
- किसी भी इजाफे या बदलाव के बारे में 2/3 आवंटियों की मंजूरी की जरूरत होगी।
- RERA में रजिस्ट्रेशन से पहले किसी तरह का लॉन्च या विज्ञापन नहीं किया जाएगा।
- अगर बहुमत अधिकार तीसरे पक्ष को ट्रांसफर किया जाना है तो 2/3 सहमति की जरूरत होगी।
- प्रोजेक्ट प्लान, लेआउट, सरकारी मंजूरी और लैंड टाइटल स्टेटस और उप-ठेकेदारों की जानकारी साझा करना।
- वक्त पर प्रोजेक्ट पूरा होकर ग्राहकों को मिल जाए, इस पर जोर दिया जाएगा।
- पांच साल की दोष दायित्व अवधि के कारण कंस्ट्रक्शन की क्वॉलिटी में इजाफा।
- ब्योरेवार समय या काफी फ्लैट्स बिक जाने के बाद आरडबल्यूए का गठन।
इस कानून का सबसे सकारात्मक पहलू है कि यह फ्लैटों, अपार्टमेंट आदि की खरीद के लिए एक एकीकृत कानूनी व्यवस्था मुहैया कराता है, साथ ही पूरे देश में उसका मानकीकरण करता है। अब आपको इस कानून की मुख्य बातों के बारे में बताते हैं:
रेगुलेटरी अथॉरिटी की स्थापना: रियल एस्टेट के लिए सही रेगुलेटर (जैसे कैपिटल मार्केट के लिए सिक्योरिटी एक्सचेंज बोर्ड अॉफ इंडिया) की जरूरत लंबे वक्त से थी। इस कानून के तहत हर राज्य और केंद्र शासित प्रदेश में रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी का गठन किया जाएगा। इसका मकसद ग्राहकों के हितों की रक्षा, जमा किए डाटा को संग्रहित करना और मजबूत शिकायत निवारण प्रणाली बनाना है। समय की बर्बादी को रोकने के लिए प्राधिकरण को अधिकतम 60 दिनों के भीतर आवेदन का निपटारा करना अनिवार्य है। यह सीमा तभी बढ़ाई जा सकती है, अगर देरी का कोई कारण दर्ज हो। इसके अलावा रियल एस्टेट अपीलीय प्राधिकरण (REAT) में अपील की जा सकती है।
अनिवार्य रजिस्ट्रेशन: केंद्रीय कानून के मुताबिक सभी रियल एस्टेट प्रोजेक्ट्स (जहां विकसित होने वाला कुल क्षेत्रफल 500 स्क्वेयर मीटर से ज्यादा है या किसी भी चरण में 8 से ज्यादा अपार्टमेंट्स बनने अनिवार्य हैं) का अपने राज्य के RERA में रजिस्टर्ड होना अनिवार्य है। जिन मौजूदा प्रोजेक्ट्स को कंप्लीशन सर्टिफिकेट (सीसी) या अॉक्युपेंसी सर्टिफिकेट (ओसी) जारी नहीं हुआ है, उन्हें भी इस कानून के तहत रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य है। रजिस्ट्रेशन कराते वक्त प्रोमोटर्स को प्रोजेक्ट की जानकारी जैसे-जमीन की स्थिति, प्रोमोटर की जानकारी, अप्रूवल, पूरे होने का समय इत्यादि बतानी होगी। जब रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया पूरी हो जाएगी और सभी मंजूरियां मिल जाएंगी, तब प्रोजेक्ट की मार्केटिंग की जा सकती है।
रिजर्व अकाउंट: प्रोजेक्ट्स में देरी होने की सबसे मुख्य वजह है कि एक प्रोजेक्ट के लिए पैसा जमा कर उसे दूसरे प्रोजेक्ट में निवेश कर दिया जाता है। इस पर रोक लगाने के लिए प्रोमोटर्स को प्रोजेक्ट का 70 प्रतिशत पैसा अलग रिजर्व अकाउंट में रखना होगा। इस खाते की राशि को सिर्फ जमीन या निर्माण के कामों में खर्च किया जा सकता है। किसी पेशेवर से इसे सर्टिफाइड कराना भी जरूरी है।
प्रोजेक्ट की प्रोग्रेस देख सकेंगे ग्राहक: RERA के लागू होने के बाद घर खरीददार RERA की वेबसाइट पर प्रोजेक्ट की प्रोग्रेस मालूम कर सकेंगे। प्रोजेक्ट में कितना काम पूरा हुआ, इसकी जानकारी प्रोमोटर्स को नियमित अंतराल पर नियामक को देनी होगी।
टाइटल रिप्रेजेंटेशन: प्रोमोटर्स को अब सही टाइटल और जमीन पर रुचि के लिए सकारात्मक वॉरंटी बनानी होगी, जिसे बाद में घर खरीददार उनके खिलाफ इस्तेमाल कर सकते हैं। गलत टाइटल की खोज की जानी चाहिए। इसके अलावा उन्हें टाइटल और प्रोजेक्ट के कंस्ट्रक्शन के लिए इन्श्योरेंस भी हासिल करनी होगी, जिसका मुनाफा बिक्री समझौते के निष्पादन के बाद अलॉटी को दिया जाना चाहिए।
बिक्री समझौते का मानकीकरण: इस कानून के तहत प्रोमोटर्स और घर खरीददार के बीच बिक्री समझौते का मानक मॉडल है। मिसाल के तौर पर प्रोमोटर्स ने घर खरीददारों के लिए कई धाराएं डालीं, जो उनके लिए सजा जैसी थीं, लेकिन प्रमोटर्स अगर कोई गलती करते थे तो उन पर कोई पेनाल्टी नहीं लगती थी। लेकिन एेसे क्लॉज अब बीते दिनों की बात हो जाएंगे और घर ग्राहकों को भविष्य में एक संतुलित अग्रीमेंट मिलेगा।
पेनाल्टी: इस कानून का उल्लंघन न हो, इसके लिए सख्त जुर्माने (प्रोजेक्ट की लागत का 10 प्रतिशत) का प्रावधान है।
RERA के तहत कारपेट एरिया की परिभाषा:
प्रॉपर्टी का एरिया तीन तरीकों से कैलकुलेट किया जाता है-कारपेट एरिया, बिल्ड-अप एरिया और सुपर बिल्ड-अप एरिया। इसलिए जब भी बात प्रॉपर्टी खरीदने की आती है तो आप क्या चुकाएंगे और आपको क्या मिलेगा, इसके बीच काफी फर्क होता है। महाराष्ट्र RERA के चेयरमैन गौतम चटर्जी ने कहा, अब यह सभी बिल्डर्स के लिेए अनिवार्य है कि वे अपार्टमेंट का साइज कारपेट एरिया (चार दीवारों के बीच का एरिया) के आधार पर बताएं। इस्तेमाल होने वाले इल एरिया में टॉयलेट एवं किचन भी शामिल होंगे। इससे पारदर्शिता आएगी, जो पहले नहीं थी।
RERA के मुताबिक कारपेट एरिया किसी अपार्टमेंट का इस्तेमाल होने वाला एरिया होता है, जिसमें बाहरी दीवारों का एरिया, सर्विस शाफ्ट, बालकनी और वरांडा एरिया शामिल नहीं होते। फ्लैट के अंदर की दीवारों का एरिया इसका हिस्सा होता है।सुमेर ग्रुप के सीईओ राहुल शाह ने कहा, RERA की गाइडलाइंस के मुताबिक, बिल्डर को सटीक कारपेट एरिया की जानकारी देनी होगी, ताकि ग्राहकों को यह पता चल सके कि वह किसके लिए भुगतान कर रहे हैं। लेकिन कानून के तहत बिल्डरों को कारपेट एरिया के आधार पर फ्लैट बेचना अनिवार्य नहीं है।
रियल एस्टेट इंडस्ट्री पर RERA का असर:
- शुरुआती बैकलॉग
- प्रोजेक्ट की बढ़ी हुई लागत
- चुस्त नकदी
- पूंजी की लागत में इजाफा
- एकत्रीकरण
- प्रोजेक्ट लॉन्च टाइम में बढ़ोतरी
शुरुआती तौर पर मौजूदा और नए प्रोजेक्ट्स के रजिस्ट्रेशन पर काफी काम करना होगा। पिछले पांच वर्षों में पूरे हुए प्रोजेक्ट्स का स्टेटस, प्रोमोटर की जानकारी, विस्तृत निष्पादन योजना तैयार करने की जरूरत है।
RERA के आने से घर खरीद से जुड़े सभी विवादों का निपटारा स्टेट रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी और रियल एस्टेट अपीलीय ट्रिब्यूनल करेगा। एेसे मामलों के लिए सिविल कोर्ट या कंज्यूमर फोरम का सहारा नहीं लिया जाएगा। मामलों के तेजी से निपटारे के लिए RERA ने मूल सिद्धांत तय किए हैं। इसकी सफलता वक्त पर विवादों का निपटारा करने वाली संस्थाओं का गठन और कैसे इन विवादों को सुलझाया जाएगा, इस पर निर्भर करेगा।
राज्यों में RERA
31 जुलाई, 2017 को 23 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों (यूटी) ने अपने स्थायी और अंतिम रेगुलेटरी अथॉरिटी की स्थापना की। RERA के तहत सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में खुद का रेगुलेटर होना चाहिए। जब तक बिल्डर अपना मौजूदा या आने वाला प्रोजेक्ट राज्यों के स्थायी या अंतरिम रेगुलेटर में रजिस्टर्ड नहीं कर देते, वे उसका प्रचार नहीं कर सकते। जिन प्रोजेक्ट्स को ओसी नहीं मिला था, उनके लिए आखिरी तारीख 31 जुलाई, 2017 थी।
आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय ने कहा कि गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और पंजाब ने अपने स्थायी रियल एस्टेट नियामक प्राधिकरण का गठन कर लिया है, जबकि 19 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने अंतरिम प्राधिकरण बना चुके हैं। केवल 23 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों ने कानून के नियमों को नोटिफाई किया है, जबकि 6 राज्यों ने नियमों को ड्राफ्ट कर लिया है, लेकिन नोटिफाई नहीं। कुल 9 राज्यों/ केंद्र शासित प्रदेशों ने रियल एस्टेट कानून के तहत अंतरिम अपीलीय न्यायाधिकरण नियुक्त किया है जबकि केवल सात राज्यों ने अधिनियम के तहत ऑनलाइन पंजीकरण शुरू कर दिया है।
महाराष्ट्र RERA: महाराष्ट्र रियल एस्टेट विनियामक प्राधिकरण (MahaRERA) 1 मई, 2017 को अस्तित्व में आया था। बिल्डर्स और रियल एस्टेट एजेंट्स को अपने नए और मौजूदा प्रोजेक्ट्स को रजिस्टर्ड कराने के लिए 90 दिनों की मोहलत दी गई।
सुलह व्यवस्था शुरू करने वाला पहला राज्य बना महाराष्ट्र: इस राज्य के परेशान घर खरीददार बिल्डर के साथ अपने विवादों का जल्द निपटारा कर पाएंगे, क्योंकि महाराष्ट्र RERA के सेक्शन 32 (जी) के वैकल्पिक विवाद समाधान (एडीआर) के तहत सुलह व्यवस्था शुरू करने वाला पहला राज्य बन गया है। यह सुलह व्यवस्था 1 फरवरी, 2018 से शुरू हो गई है और सुलह कराने वाली बेंच मार्च के पहले हफ्ते में सुनवाई शुरू कर सकती है। कोई भी परेशान आवंटी या प्रोमोटर (RERA में परिभाषित) महाराष्ट्र रियल एस्टेट विनियामक प्राधिकरण के तहत सुलह व्यवस्था का आह्वान कर सकता है। इसके लिए एक वेबसाइट बनाई गई है, जिसे MahaRERA की वेबसाइट के जरिए भी चलाया जा सकता है।
उत्तर प्रदेश RERA: नियमों को नोटिफाई कर दिया गया है और राज्य के RERA की वेबसाइट 26 जुलाई, 2017 को लॉन्च की गई थी।
कर्नाटक RERA: कर्नाटक RERA नियम, 2016 को कैबिनेट ने 5 जुलाई, 2017 को मंजूरी दी थी।
तमिलनाडु RERA: प्राधिकरण के नियमों को 22 जुलाई, 2017 को नोटिफाई किया गया। रजिस्ट्रेशन के लिए प्रोजेक्ट्स को शामिल या बाहर करना इस बात पर निर्भर करेगा कि क्या वे चेन्नई मेट्रोपॉलिटन एरिया (सीएमए) के अंदर आते हैं या नहीं।
हरियाणा RERA: राज्य की कैबिनेट ने प्राधिकरण के नियमों को 25 जुलाई, 2017 को मंजूरी दी थी।
राजस्थान RERA: राज्य के नियामक प्राधिकरण के नियमों को नोटिफाई कर दिया गया है और वेबसाइट 1 जून, 2017 को लॉन्च हो गई थी। राज्य ने अंतरिम नियामक प्राधिकरण के रूप में शहरी विकास और आवास विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव और अंतरिम अपीलीय न्यायाधिकरण के रूप में खाद्य सुरक्षा अपीलीय ट्रिब्यूनल को नामित किया है।
दिल्ली RERA: दिल्ली RERA के नियमों को भी नोटिफाई कर दिया गया है। दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) के उपाध्यक्ष को RERA के तहत नियामक प्राधिकरण के रूप में नामित किया गया है।
तेलंगाना RERA: तेलंगाना सरकार ने RERA के नियमों को 31 जुलाई, 2017 को नोटिफाई किया था। राज्य के नियमों को तेलंगाना राज्य रियल एस्टेट (विनियमन और विकास) नियम, 2017 कहा जाएगा। ये नियम उन सभी रियल एस्टेट प्रोजेक्ट्स पर लागू होंगे, जिनकी बिल्डिंगों को संबंधित प्राधिकरण ने 1 जनवरी 2017 को या उसके बाद मंजूरी दी है।
पश्चिम बंगाल RERA: पश्चिम बंगाल आवास उद्योग विनियमन विधेयक 2017 राज्य विधानसभा द्वारा 16 अगस्त, 2017 को पारित किया गया था। नोटिफाई किए जाने के बाद 500 स्क्वेयर मीटर से ज्यादा और 8 अपार्टमेंट वाले सभी आवासीय प्रोजेक्ट्स को राज्य नियामक आवास उद्योग विनियमन विधेयक (HIRA) के पास रजिस्टर कराना पड़ेगा।
RERA के तहत कौन से प्रोजेक्ट्स आएंगे:
- प्लॉटेड डिवेलपमेंट के अलावा कमर्शियल और रिहायशी प्रोजेक्ट्स
- 500 स्क्वेयर मीटर से ज्यादा या 8 यूनिट्स वाले प्रोजेक्ट्स।
- कानून के लागू होने से पहले बिना कंप्लीशन सर्टिफिकेट वाले प्रोजेक्ट्स।
- जिस प्रोजेक्ट का मकसद रेनोवेशन, रिपेयर, री-डिवेलपमेंट है और पुन: आवंटन, मार्केटिंग, विज्ञापन, नए अपार्टमेंट्स की बिक्री या नया आवंटन नहीं करना है, वह RERA के तहत नहीं आएंगे।
- हर चरण को नया रियल एस्टेट प्रोजेक्ट माना जाएगा, जिसके लिए नया रजिस्ट्रेशन होगा।
किन चीजों पर बिल्डर को माननी होगी RERA की बात:
- प्रोजेक्ट रजिस्ट्रेशन
- विज्ञापन
- निकासी – पीओसी विधि
- कारपेट एरिया
- वेबसाइट अपडेशन/भंडाफोड़
- प्रोजेक्ट में बदलाव-2/3 अलॉटीज की मंजूरी
- प्रोजेक्ट अकाउंट्स-अॉडिट
- अलॉटी से लिया गया 70 प्रतिशत फंड प्रोजेक्ट के अकाउंट में जमा कराना होगा। इसका इस्तेमाल सिर्फ निर्माण और जमीन की लागत को कवर करने के लिए होगा।
- पर्सेंटेज कंप्लीशन मेथड के अनुपात में निकासी होगी।
- निकासी किसी इंजीनियर, आर्किटेक्ट या सीए द्वारा सर्टिफाइड होनी चाहिए।
- गैर-अनुपालन पर प्रोजेक्ट के बैंक खाते फ्रीज करने के RERA के प्रावधान।
- देरी पर ब्याज कंज्यूमर और प्रोमोटर दोनों के लिए एक समान होगा।
RERA के तहत बिल्डर को क्या-क्या जानकारियां देनी होंगी:
- नंबर, टाइप और अपार्टमेंट का कारपेट एरिया।
- किसी भी बड़े इजाफे या बदलाव के लिए प्रभावित आवंटियों से सहमति।
- ना बिक पाने वाली इन्वेंट्री या लंबित मंजूरियों जैसी जानकारियों को हर तिमाही में RERA की वेबसाइट पर अपडेट करना।
- तय वक्त में प्रोजेक्ट पूरा करना।
- विज्ञापन में झूठे बयान या कमिटमेंट नहीं करना।
- प्रोमोटर मनमाने ढंग से यूनिट को रद्द नहीं कर सकता।
RERA के तहत कैसे रजिस्टर कराएं प्रोजेक्ट्स:
- RERA के तहत प्रोजेक्ट का रजिस्ट्रेशन कराते वक्त सभी मंजूरियों का प्रमाणपत्र, प्रारंभिक प्रमाणपत्र, मंजूर किया गया प्लान, लेआउट प्लान, स्पेसिफिकेशन, विकास कार्य का प्लान, प्रस्तावित सुविधाएं, अलॉटमेंट लेटर, सेल अग्रीमेंट और कन्वेयंस डीड पेश करने पड़ते हैं।
- नए और मौजूदा प्रोजेक्ट्स का लॉन्च से पहले RERA के तहत रजिस्ट्रेशन अनिवार्य है।
- RERA और RERA अपीलीय ट्रिब्यूनल में विवाद का 6 महीने में निपटारा।
- एक ही प्रोजेक्ट के विभिन्न चरणों का अलग-अलग रजिस्ट्रेशन होगा।
- डिवेलपर्स को RERA को पिछले 5 वर्षों में लॉन्च हुए प्रोजेक्ट का उनके स्टेटस के साथ ब्योरा दोना होगा। साथ ही बताना होगा कि देरी क्यों हुई।
- RERA की वेबसाइट पर अपडेट।
- अगर डिवेलपर की गलती नहीं है और देरी हुई है तो अधिकतम 1 साल का एक्सटेंशन लिया जा सकता है।
- सीए द्वारा प्रोजेक्ट के अकाउंट का सालाना अॉडिट।
- आरडब्ल्यूए के फेवर में कॉमन एरिया का कन्वेयंस डीड।
- निर्माण और लैंड टाइटल का इंश्योरेंस।
- प्रोजेक्ट के पूरा होने की समयावधि।
निर्माण और जमीन के टाइटल के लिए बीमा लागत को RERA कैसे प्रभावित करेगा?
- आंतरिक संचय से भूमि और मंजूरी की लागत को बाहर किया जाएगा क्योंकि प्रीलॉन्च का कॉन्सेप्ट खत्म हो जाएगा। वर्तमान ऋण वित्तपोषण की जगह इक्विटी वित्तपोषण ले लेगा।
- पूंजी की लागत में बढ़ोतरी हो सकती है, क्योंकि डिवेलपर्स को अब जमीन और मंजूरी की लागत के लिए फंड इक्विटी के जरिए जुटाना होगा।
- मंजूरी मिलने में देरी के कारण डिवेलपर्स के लिेए ऋण वित्तपोषण सही रास्ता नहीं रह गया है। चूंकि इस सेक्टर में आना मुश्किल हो गया है, इसलिए एकत्रीकरण की संभावना है।
- कोई प्रोजेक्ट शुरू करने के लिए मजबूत वित्तीय और निष्पादन क्षमता की जरूरत होगी।
- प्रोजेक्ट लॉन्च करने का समय बढ़ सकता है क्योंकि विवरण को अंतिम रूप देने में बहुत समय लगेगा।
- ड्राइंग, यूटिलिटी लेआउट आदि जैसे विवरणों को प्रोजेक्ट शुरू होने से पहले अंतिम रूप देना होगा।
रियल एस्टेट एजेंट्स पर क्या होगा RERA का असर:
रियल एस्टेट (रेग्युलेशन एंड डिेवेलपमेंट एक्ट), (RERA) के तहत रियल एस्टेट एजेंटों को लेनदेन की सुविधा के लिए खुद को रजिस्टर्ड कराना होगा। भारत में ब्रोकर्स का सेगमेंट करीब 4 बिलियन डॉलर की इंडस्ट्री है। पूरे देश में 5 से 9 लाख ब्रोकर्स हो सकते हैं। हालांकि यह पारंपरिक रूप से असंगठित और अनियमित हैं।
आरई/मैक्स इंडिया के चेयरमैन और फाउंडर सैम चोपड़ा ने कहा, यह इंडस्ट्री में जवाबदेही लाएगा, क्योंकि जो पेशेवर और पारदर्शी बिजनेस में यकीन करते हैं, वे पूरा फायदा उठा ले जाएंगे। अब एजेंट्स का रोल और अहम हो जाएगा, क्योंकि उन्हें ग्राहक को सही जानकारी और RERA के तहत रजिस्टर्ड डिवेलपर चुनने में मदद भी करनी होगी।
RERA के आने के बाद ब्रोकर्स किसी भी एेसी सुविधा या सेवा का वादा नहीं कर सकते, जो दस्तावेज में न लिखी हो। इतना ही नहीं, उन्हें बुकिंग के वक्त ग्राहकों को पूरी जानकारी और दस्तावेज मुहैया कराने होंगे। RERA को गैरजिम्मेदाराना और अनुभवहीन ब्रोकर्स की पहचान करनी होगी, क्योंकि नियम से न चलने वाले दलालों को भारी जुर्माना, जेल या दोनों हो सकते हैं।
एजेंट्स को RERA की इन बातों को मानना पड़ेगा:
1. सेक्शन 3-RERA में रजिस्ट्रेशन कराए बिना प्रमोटर बिक्री के लिए विज्ञापन, किताब या बिक्री की पेशकश नहीं कर सकता।
2.सेक्शन 9 : RERA रजिस्ट्रेशन के बिना कोई एजेंट किसी प्रोजेक्ट को नहीं बेच सकता।
-जो भी बिक्री एजेंट करेंगे, उसमें उनका RERA नंबर भी लिखा होगा।
-रजिस्ट्रेशन को रिन्यू भी कराना होगा।
-अगर नियमों का उल्लंघन किया गया तो रजिस्ट्रेशन रद्द या ब्लॉक किया जा सकता है।
3. सेक्शन 10– कोई एजेंट बिना रजिस्टर्ड प्रोजेक्ट को नहीं बेच सकता।
-किताबें और रिकॉर्ड बनाए रखें।
-व्यापार की गलत नीतियों में शामिल न हों।
-कोई गलत बयान-मौखिक, लिखित, विजुअल
-विशेष मानक वाली सर्विसेज का प्रतिनिधित्व
-प्रतिनिधित्व करें कि प्रोमोटर या खुद के पास अप्रूवल या संबंधन है।
-अखबार में विज्ञापन के प्रकाशन को अनुमति देना और गलत सेवाओं की पेशकश नहीं करना।
-ग्राहकों को बुकिंग के वक्त सभी डॉक्युमेंट्स मुहैया कराना।
एेसे दर्ज कराएं RERA में शिकायत:
आरआईसीएस के पॉलिसी हेड दिग्बिजॉय भौमिक ने कहा, रियल एस्टेट रेग्युलेशन एक्ट 2016 के सेक्शन 31 के तहत रियल एस्टेट रेग्युलेटरी अथॉरिटी या निर्णायक अधिकारी के पास शिकायत दर्ज कराई जा सकती है। ऐसी शिकायतें प्रमोटरों, आवंटियों या रियल एस्टेट एजेंटों के खिलाफ हो सकती हैं। ज्यादातर राज्यों के नियमों में RERA को अपरिवर्तनीय बनाया गया है, जिसमें फॉर्म और प्रक्रिया है। इसके तहत आवेदन किया जा सकता है। चंडीगढ़ केंद्रशासित प्रदेश या उत्तर प्रदेश के मामले में इन्हें फॉर्म एम या फॉर्म एन कहा गया है। (ज्यादातर राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मामलों में भी एेसा ही है)
राज्यों के RERA के तहत शिकायतें तय फॉर्म के रूप में होनी चाहिए। RERA के तहत पंजीकृत प्रोजेक्ट अगर नियमों का उल्लंघन करते हैं तो तय समय सीमा के भीतर उनके खिलाफ इस कानून के प्रावधानों के तहत शिकायत दर्ज कराई जा सकती है। एसएनजी एंड पार्टनर्स लॉ फर्म में पार्टनर अजय मोंगा ने कहा, ”जिन लोगों ने एनसीडीआरसी में शिकायतें दर्ज कराई हैं, वह उन्हें वापस लेकर RERA में शिकायत दर्ज करा सकते हैं। अन्य अपराध (धारा 12, 14, 18 और 19 के तहत शिकायतें छोड़कर) RERA प्राधिकरण के सामने दायर की जा सकती हैं”।
RERA के तहत लागू सजा
लागू धाराएं | अपराध | लागू सजाएं |
सेक्शन 9 (7) | गलत बयान या धोखाधड़ी के माध्यम से पंजीकरण | एजेंट का रजिस्ट्रेशन नंबर रद्द किया जाएगा |
सेक्शन 9 और 10 का उल्लंघन | हासिल किए हुए रजिस्ट्रेशन का उल्लंघन | 10,000 रुपये प्रति दिन की सजा, जिस दौरान डिफॉल्ट यूनिट की लागत का 5% तक बढ़ाया जाता है |
सेक्शन 65 | RERA प्राधिकरण के आदेशों का उल्लंघन | बेची गई यूनिट की कीमत का 5 प्रतिशत जुर्माना |
सेक्शन 66 | अपीलीय ट्रिब्यूनल के आदेशों का उल्लंघन | एक साल जेल या बेची गई यूनिट की कीमत का 10 प्रतिशत जुर्माना |
RERA के फायदे:
- इंडस्ट्री गवर्नेंस और पारदर्शिता
- प्रोजेक्ट की योग्यता और वितरण
- मानकीकरण एवं क्वॉलिटी
- निवेशकों का बढ़ेगा भरोसा
- ज्यादा निवेश को बढावा और पीई फंडिंग
- नियामक वातावरण
डिवेलपर:
- कॉमन और बेस्ट प्रैक्टिस
- बेहतर कार्यकुशलता
- सेक्टर का एकत्रीकरण
- कॉरपोरेट ब्रैंडिंग
- ज्यादा इन्वेस्टमेंट
- अॉर्गनाइज्ड फंडिंग में बढ़ोतरी
खरीददार
- ग्राहकों के हितों की सुरक्षा
- क्वॉलिटी उत्पाद और समय पर डिलिवरी
- संतुलित अग्रीमेंट्स और ट्रीटमेंट
- पारदर्शिता-कारपेट एरिया के आधार पर बिक्री
- पैसे की सुरक्षा और उपयोगिता पर पारदर्शिता
एजेंट्स
- सेक्टर का एकत्रीकरण (अनिवार्य स्टेट रजिस्ट्रेशन की वजह से)
- बेहतर पारदर्शिता
- बेहतर कार्यकुशलता
- शानदार प्रथाओं को अपनाने से कम मुकदमेबाजी
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